प्रेम और घोटाले

यह तो सभी जानते हैं कि आज के भारत और इसकी राजनीति की क्या स्थिति है। पहले दादाजी जेब भरते थे, फिर पिताजी हाथ साफ करते हैं,और फिर उनके बेटे की भी बारी आती है। ऐसे ही ये सिलसिला चलता रहता है और हमारा देश पीढ़ि दर पीढ़ि खोखला होता जाता है। फिर भी हमारा देश रंगीन हो और ‘अतुल्य भारत’ के नाम से भी जाना जाता है।

ऐसे ही एक बार एक बड़े घोटालित नेताजी के घर बेटा पैदा हुआ। यों तो नेताजी बिटिया चाहते थे क्योंकि उनके दिल में भी कुछ नरम हिस्सा था। परंतु यह भी अच्छा ही हुआ क्योंकि तिजोरियां भरने में वे पार्टी में अपने बेटे को लाकर और भी अधिक प्रख्यात की अनुभूति कर सकते थे। यही सारे ख्वाब बुनते-बुनते वो अपने पुत्र से मिलने अस्पताल गए। पहली नजर में वह नवजात शिशु बड़े ही शरीफ घर का मालूम हुआ जिसको देख नेताजी चौंक गए मानो अंतरआत्मा को झटका सा लगा हो। वे तो अपनी ही संतान को चार गुना बड़ी नज़रों से ताकने लगे। हमारे दूरदर्शी और अंतरयामी नेताजी को लगा कि उनका पुत्र शायद ही उसकी उम्मीदों पर खरा उतरे। यह देख नर्स कमरे से बाहर चली गई। यह सही मौका था अपने पुत्र से अपने मन की बात करने का। वह बोले – “अभी जाते-जाते एक ही बात बोलूँगा, मेरी बात को या तो पिता की सलाह समझ कर रख लेना या फिर इस कूड़ेदान में फेक देना।” (पास रखे कूड़ेदान की ओर इशारा करते हुए) वह आगे बोले-“गौर से सुनो, बड़े होकर ‘प्रेम से घोटाले करना और घोटालों से प्रेम”।

इतना बोलकर नेताजी वहाँ से प्रस्थान करने लगे। वह दरवाजे तक पहुंचे ही थे कि कूड़ेदान में कुछ गिरने की आवाज आई।

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